DTP क्या है? DTP ka Full Form kya hai (Desktop Publishing)

DTP क्या है ? DTP ka Full Form kya hai

DTP क्या है ? प्रकाशन के क्षेत्र में DTP के वर्तमान स्वरूप अथवा महत्त्व को समझाइये । अथवा  डिटीपी से आपका क्या तात्पर्य है ? प्रकाशन (Publication) में डीटीपी के महत्त्व को समझाइए । अथवा डेस्कटोप पब्लिशिंग की कोई विशेषताएँ लिखिए।

DTP का सामान्य अर्थ विजिटिंग कार्ड बनाना या किताबें छापकर तैयार करना। लेकिन वर्तमान में तकनीक के बदलाव ने अब हर तरह की प्रिंटिंग का आधार डी.टी.पी. (DTP) को बना दिया है। इसी कारण इसमें व्यावहारिक व व्यावसायिकता का समावेश अच्छी तरह से होना जरूरी है।

छपाई का डिजाइन प्रोजेक्ट या प्रिंट जॉब एक ऐसी प्रक्रिया है जो अन्तरनिर्भर कदमों से तय होती है। प्रोजेक्ट के प्रारम्भ से ही यह प्रक्रिया शुरू होती है और जिसका अन्त ग्राहक को काम सौंपने के साथ होता है। छपाई के लिए परिकल्पित प्रोजेक्ट सामान्यतः एक व्यक्ति का काम नहीं होता। विशिष्ट प्रोजेक्ट में लेखक, डिजाइनर, उत्पाद प्रबन्धक, स्क्रेनिंग स्रोत, प्रेस पूर्व विक्रेता आदि जुड़े होते हैं।

DTP का पूर्ण नाम- Desktop Publishing है। इसका सर्वाधिक उपयोग पब्लिकेशन के क्षेत्र में होता है। यह सॉफ्टवेयर टैक्स्ट टाइप करने तथा प्रिंटिंग से सम्बन्धित है। इसमें ‘अधिकतर Pagemaker, Corel Draw, Ventura व Photoshop का उपयोग किया जाता है।

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पेज मेजर का उपयोग पुस्तक प्रकाशित करने से सम्बन्धित सॉफ्टवेयर है।

Corel Draw एक डिजाइनिंग से सम्बन्धित सॉफ्टवेयर है। इसके द्वारा थैलियों तथा कपड़ों पर विशेष प्रकार की डिजाइनिंग छापी जाती है।

Photoshop का उपयोग फोटोग्राफी में किया जाता है। इसके द्वारा Photo को बड़ा या छोटा किया जा सकता है तथा Photo में Editing व Formatting भी की जा सकती है।

DTP का वर्तमान स्वरूप- प्रकाशन के क्षेत्र में आज DTP अर्थात् डेस्कटॉप पब्लिशिंग का बोलबाला है। डेस्कटॉप के इस प्रकाशन की कौन अपेक्षा कर सकता है। इसके करिश्माई व्यक्तित्व ने परम्परागत प्रकाशन व्यवसाय को साईड में कर दिया है। व्यावसायिक क्षितिज पर कम्प्यूटर के आगमन ने मुद्रण तकनीक के स्वभाव और स्वरूप को सर्वथा बदल दिया।

कम या ज्यादा आजकल सभी उपभोक्ता पत्र को प्रेस की बजाय ऑफ सेट प्रेस द्वारा किये गये कोम को तरजीह देने लगे हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि ऑफसेट मुद्रण तथा रंगों के सही मेल की अपनी सामर्थ्य के बलबुते पर बाजार का सिरमौर बन गया है। लेटर प्रेस का अपना एक जमाना रहा है और आज भी कभी कहीं कहीं इन पर छपाई का काम करते हुए देखा जा सकता है।

इस पर मैटर अथवा टैक्स्ट हाथ में कम्पोज किया जाता है जबकि ऑफसेट के लिए डीटीपी बैटर तैयार किया जाता है जो कि पूरी तरह से कम्पोज पर आधारित है। तैयार किया गया मटर ट्रेसिंग पेपर पर होता है जहाँ से इसका उपयोग ऑफसेट छपाई के लिए किया जाता है। इसका मुद्रण हर लिहाज से बेमिसाल होता है और स्पीड तो और भी खतरनाक तरीके. से होती है।

इस प्रसंग में निम्न बिन्दुओं पर विचार करना आवश्यक है

(1) पारम्परिक विधि से मैटर कम्पोज करने में जहाँ एक-एक अक्षर को कम्पोज किया जाता है। वहीं डीटीपी विधि से मैटर को सीधे टाईप करके कम्पोज किया जाता है।

(2) पारम्परिक विधि में पेज ले आउट बनाकर तैयार किया जाता है जबकि नयी विधि में ले आउट बेहद आसान है। बाद में परिवर्तन व परिवर्द्धन करना बेहद आसान व सरल काम है।

(3) पुरानी विधि में मैटर में सुधार करने का कार्य कष्टसाध्य है। ऐसा करने के लिए बार- बार प्रूफ निकालने के दौर से गुजरना पड़ता है जबकि डीटीपी विधि में यह कार्य चुटकी बजाते ही सम्पन्न हो जाता है। वह कम्प्यूटर के पर्दे पर करके देखा जा सकता है व अपेक्षाकृत अधिक आसानी से किया जा सकता है।

(4) पुरानी विधि में कम्पोजिंग श्रम व समय साध्य होती थी, पर इधर वह सीधे कम्प्यूटर पर होती है। इसलिए यह फीडिंग करने वाले व्यक्ति को टाइपिंग दक्षता पर निर्भर करता है कि वह काम को कितना जल्दी अन्जाम देता है।

(5) पुरानी विधि में कम्पोज किये गये मैटर को जल्दी ही प्रिंट करना होता है। अतः रखने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके विपरीत डीटीपी विधि से कम्पोज किया गया मैटर फ्लॉपी में जमा किया जाता है या फिर पैन ड्राइव या सीडी या डीवीडी में जमा किया जाता है।

(6) परम्परागत विधि में टाईप सैट में विविधता का अभाव होता है जबकि डीटीपी के नये तरीके में भाँति-भाँति की डिजाइनों के शब्द एक ही टैक्स्ट में ही कम्पोज किये जा सकते हैं।

(7) पुरानी विधि में डिजाइनिंग की अपनी सीमा होती है। नयी विधियों में ढेरों कलात्मक डिजाइन सम्भव हैं।

(8) पुरानी विधि में कम्पोज किये गये मैटर की गुणवत्ता सामान्य दर्जे की होती है जबकि डीटीपी विधि से कम्पोज किया गया मैटर प्रिंटिंग करने से प्रिंटिंग की गुणवत्ता उत्कृष्ट कोटि की होती है।

डीटीपी के वर्तमान स्वरूप के ग्राहक- डीटीपी की युनिट में हुए काम के प्रमुख उपभोक्ता हैं

1. ऑफसेट मशीन के मुद्रक

2. डिजाइनर्स

3. ब्लॉक बनाने वाले

4. रंगीन तस्वीर बनाने वाले

5. शैक्षिक विज्ञापनों से जुड़े लोग

6. पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशक

7. अनेक विज्ञापन एजेंसियाँ

8. बिक्री से जुड़े लोग

9. ब्रोशर, लेटर हैड, फ्लायर्स, कैटेलॉग, शुभकामना पत्र आदि प्रकाशित करने वाले ।

10. पुस्तक, प्रश्न-पत्र तथा पम्पलेट आदि के प्रकाशन में रूचिकर लोग ।

11. लिथो मुद्रण वाले लोग ।

सम्भावित बाजार वैसे तो कुछ ऑफसेट या लघु ऑफसेट स्वामी अपने प्रतिष्ठानों में डीटीपी इकाई लगाये रखते हैं पर कई यह काम बाहर ही करवाते हैं। यही डीटीपी इकाई के महत्त्व को रेखांकित किया जा सकता है। चूँकि यह काम बहुत श्रम वाला है। अतः इन इकाइयों के स्वतंत्र अस्तित्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कई पत्र-पत्रिकाओं को भी करवाने की जरूरत होती है। जाहिर है कि जहाँ इस प्रकार के उपयोगकर्त्ता हैं वहाँ ऐसी इकाइयाँ धड़ल्ले से स्थापित की जा सकती हैं तथा अपेक्षित बाजार भी मिल सकता है। बड़े-बड़े नगरों में ऐसी इकाइयों या मशीनों की आवश्यकता होती है।

डेस्कटोप पब्लिशिंग की विशेषताएँ

1. पारम्परिक विधि में मैटर कम्पोज करने में जहाँ एक-एक अक्षर को कम्पोज किया जाता है वहाँ डीटीपी विधि से मैटर को सीधे टाइप करके कम्पोज किया जाता है।

2. DTP के द्वारा अलग-अलग प्रकार की files को एक साथ एक document में एकत्रित किया जा सकता है।

3. DTP के द्वारा किसी भी प्रकार के document को आसानी से customize किया जा सकता है।

4. DTP में Page Layout के द्वारा appearance को सुन्दर बनाया जा सकता है। Page Layout Text 3 Graphics Page arrange और re-arrange करने की प्रक्रिया होती है।

5. DTP के द्वारा production cost को कम किया जा सकता है। Desktop Publishing में महंगे Software पर Invest करने की आवश्यकता नहीं होती है। इससे production की लागत को कम किया जा सकता है।

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